SEMI-CONDUCTOR

SEMI-CONDUCTOR



 Semi conductor :- वे पदार्थ जिनकी प्रतिरोधकता चालक (conductor) और अचालक (insulator) पदार्थों के प्रतिरोधकताओं के बीच के क्रम का होता है है उसे अर्धचालक (semi-conductor) कहा जाता है | सामान्यतः अर्धचालक की प्रतिरोधकता 10-5 से 106 Ωm के क्रम का होता है | चालन पट्टी के उपस्थिति के आधार पर अर्ध चालक की परिभाषा निम्न प्रकार से दी जाती है ...” जिस पदार्थ के वर्जित क्षेत्र (forbidden region) बहुत पतला लगभग 10-19 J के क्रम का होता है उसे अर्धचालक (semi-conductor) कहा जाता है |” जैसे सिलिकन (Si), जर्मेनियम (Ge) तथा सेलिनियम |

विशेषतायें :-  
  1.   सामान्यतः उपधातु अर्धचालक होता है |
  2.   अर्धचालक की संयोजकता 4 होती है |
  3.   इसके संयोजी कक्षा में इलेक्ट्रानस की संख्या 4 होती है |
  4.  शुद्ध अवस्था में ये विद्युत के कुचालक होते है |
  5.  ताप बढ़ने पर इसकी प्रतिरोधकता घटती है तथा एक निश्चित ताप पर ये विद्युत के सुचालक हो जाती है |
  6.  इसकी प्रतिरोधकता 10-5 से 106 Ωm के क्रम का होता है |
  7.  इसकी चालकता 105 – 10-6 Sm-1 के क्रम का होता है |
  8.  इसमें वर्जित क्षेत्र (forbidden area) बहुत पतला लगभग 10-19 J के क्रम का होता है |
  9. अर्धचालक के क्रिस्टल में कोई स्वतंत्र इलेक्ट्रान नहीं होता है क्योंकि चारों electrons सहसंयोजक बंधन में भाग लिए होते है इसी कारन ये विद्युत के कुचालक होते है |


Types Of Semiconductors :-  अर्धचालक मूलतः दो प्रकार होते है .....
  1.  नैज अर्धचालक (Intrinsic semiconductor)
  2. बाह्य अर्धचालक (Extrinsic semiconductor)


नैज अर्धचालक :पूर्ण रूप से शुद्ध अर्धचालक को नैज अर्धचालक (Intrinsic semiconductor) कहा जाता है | सिलिकन तथा जर्मेनियम अपनी स्वाभाविक अवस्था में नैज अर्धचालक के उदहारण है | नैज अर्धचालक विद्धुतः उदासीन होते है | इसमें इलेक्ट्रानों की संख्या (ne) तथा छिद्रों (Holes) की संख्या (nh) बराबर होते हैं | नैज अर्धचालक में विद्धुत का प्रवाह सहसंयोजक बंधन टूटने के कारन होता है |
  जब नैज अर्धचालक को ऊष्मा दी जाती है अर्थात गर्म किया जाता है तो इलेक्ट्रान की गतिज उर्जा बढ़ जाती है तथा इलेक्ट्रान संयोजकता पट्टी (Valence band) से निकल कर चालन पट्टी (Conduction band) में आ जाते है जिससे चालन पट्टी में स्वतंत्र इलेक्ट्रान उत्पन्न हो जाते है तथा संयोजकता पट्टी में छिद्र (holes) उत्पन्न हो जाते है | छिद्र उत्पन्न होने के कारन ये विद्धुत के सुचालक हो जाते है | कुचालक नैज अर्धचालक को सुचालक बनाने के लिए बहुत ही कम उर्जा की जरुरत होती है जैसे जर्मेनियम के लिया 0.72 eV उर्जा की आवश्यकता होती है |

बाह्य अर्धचालक :- 
                        अपद्रव्यों या अशुद्धियों से मिश्रित या मादित (doped) अर्धचालक को बाह्य अर्धचालक (Extrinsic semiconductor) कहा जाता है | इसमे अपद्रव्यों की अशुद्धि लगभग 1 ppm होती है | ऐसे अर्धचालक doping से बनाये जाते है | बाह्य अर्धचालक  बनाने के लिए अशुद्धि के रूप में 3 संयोजकता वाले या 5 संयोजकता वाले अपद्रव्यों के परमाणु को मिलाया जाता है | अशुद्धि परमाणु का आकार  तथा अर्धचालक परमाणु के आकार लगभग सामान होता है |

बाह्य अर्धचालक के प्रकार :- Doping द्वारा मिलाये गए अपद्रव्यों के आधार पर बाह्य अर्धचालक दो प्रकार के होते है ..
1.  n - type अर्धचालक (n – type semiconductor) तथा
2.  p – type अर्धचालक (p – type semiconductor)

n-type semiconductor:-  जब शुद्ध जर्मेनियम में पांचवे ग्रुप के तत्त्व अर्थात पंच संयोजक तत्त्व जैसे एंटीमनी (Sb), आर्सेनिक (As) , फॉस्फोरस (P) आदि की सूक्ष्म मात्रा मिला दी जाती है तो ऐसे अर्धचालक को n – type का अर्धचालक कहते है क्योंकि ऐसे अर्धचालक की चालकता negative particle इलेक्ट्रान के कारण होती है |


आर्सेनिक को जब जर्मेनियम से मिलाया जाता है तो क्रिस्टल की संरचना बदल जाती है | चूँकि आर्सेनिक की संयोजकता 5 है , अतः इसके प्रत्येक परमाणु में 5 संयोजक इलेक्ट्रान होंगे | इन पांच electrons में 4 संयोजक इलेक्ट्रान के साथ सहसंयोजक बंधन बना लेते है , लेकिन पांचवे electron को सह संयोजक बंधन बनाने के लिए अपने बगल के Ge परमाणुओं के इलेक्ट्रान उपलब्ध नहीं होते | इस कारण वह स्वतंत्र हो जाता है जिससे क्रिस्टल में चालकता आ जाती है | ऐसे अर्धचालक को ही n-type अर्ध चालक कहा जाता है |
  

p-type अर्धचालक :-

जब शुद्ध जर्मेनियम में तीसरे  ग्रुप के तत्त्व अर्थात त्री संयोजक तत्त्व जैसे इंडियम, बोरान , एल्युमीनियम, आदि की सूक्ष्म मात्रा मिला दी जाती है तो ऐसे अर्धचालक को p type का अर्धचालक कहते है क्योंकि ऐसे अर्धचालक की चालकता holes के कारण होती है | ये होल इलेक्ट्रान को आकर्षित करती है इस लिए इसे धन आवेश के तुल्य माना जाता है |

इंडियम को जब जर्मेनियम से मिलाया जाता है तो क्रिस्टल की संरचना बदल जाती है | चूँकि इंडियम की संयोजकता 3 है , अतः इसके प्रत्येक परमाणु में 3 संयोजक इलेक्ट्रान होंगे | ये 3 electrons जर्मेनियम के 3 संयोजक इलेक्ट्रान के साथ सहसंयोजक बंधन बना लेते है , लेकिन बगल के एक जर्मेनियम परमाणु  के साथ सह संयोजक बंधन बनाने के लिए इंडियम में एक इलेक्ट्रान की कमी रह जाती है  | अतः में इस परमाणु के एक ओर रिक्त स्थान रह जाता है जिसे छिद्र या hole कहा जाता है | इस में निकट के एक जर्मेनियम परमाणु से एक संयोजी इलेक्ट्रान तो आ जाता है , लेकन जर्मेनियम के उस परमाणु में एक स्थान रिक्त रह जाता है | इस प्रकार क्रिस्टल के भीतर होल में गतिशीलता आ जाती है जो इलेक्ट्रान के सापेक्ष विपरीत दिशा में चलने लगता है | जिससे क्रिस्टल में चालकता आ जाती है | ये होल इलेक्ट्रान को आकर्षित करती है इस लिए इसे धन आवेश के तुल्य माना जाता है | ऐसे अर्धचालक को ही n-type अर्ध चालक कहा जाता है | 



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